लेखिनी वार्षिक लेखन प्रतियोगिता# वो चाय की टपरी
बात तब की है जब मै इन से
रूठ कर मायके चली गयी थी ।दस दिन तक मैनें इन से कोई बात नही की फोन पर।इनकी तो
हालत टाइट हो गयी ये तुरंत मुझे लेने मेरे मायके पहुंच गए। थोड़ा सा रूठना मनाना हुआ
और ये मुझे अपने साथ ले आये । मायके से मेरी ससुराल का गाड़ी से थोड़ी ही देर का
रास्ता था।घर आते ही क्या देखती हूं मेरे बेटे का सामना बंधा हुआ है मैने कहा ये
कहा जा रहा है। तब पतिदेव बोले ,”अपनी बुआ के यहां
जा रहा हैं बहुत दिनों से बुला रही थी पहले तुम मायके चली गयी थी सो ये अब जा रहा
है।
मैं भी चुप रही मैंने सोचा
कही बेटे को रोकूं गी तो हमारी फिर बहस होगी मैने सोचा कोई नही कौन सा दूर है एक
ही शहर मे है जब मन करेगा मिल आऊगी।
शाम को जैसे ही मै बैग
अनपैक करने लगी तो पतिदेव ने कहा
“सुमी ! बैग से कपड़े मत
निकालो बल्कि दो चार जोड़ी मेरी भी रख लो कल हम ऋषिकेश जा रहे है ।“मैने कहा,
“बिना मयंक के ?”
ये बोले कभी कभी अकेले
सिर्फ तुम और मैं क्यों नही घुम सकते।
मुझे भी याद है सास हमे
कभी अकेले नही जाने देती थी ।कभी स्वयं तो कभी ननद देवर को साथ कर देती थी।आज
पहली बार शादी के बाद मैं इनके साथ जा रही थी।अगले दिन सुबह तड़के ही हम गाड़ी लेकर
निकल पड़े ऋषिकेश की ओर दोपहर बाद हम वहां पहुंचे।मौसम बहुत सुहावना हो रहा था जून
के महीने में भी पहाड़ों पर बरसात होने के कारण ऋषिकेश में हलकी ठंड का स्पर्श था ।
वहां गंगा स्नान करके नीलकंठ महादेव मंदिर का प्रोग्राम था।हम जीप से टेढे मेढे रास्तों
से होते हुए धाम से थोडा पहले रूके। वहां से हमे रास्ता पैदल तय करना था। रास्ते के
दोनों तरफ चाय के स्टाल थे।पता नही क्यूं मुझे एक टी स्टॉल बहुत भा गया।एक तो
बरसात का मौसम ऊपर से खूबसूरत पहाड़ी नज़ारा तीसरा मेरे फेवरट चीजे उस टी स्टॉल पर
थी।जैसे करीपते के आलू के पकोड़े,जलेबी, गुलाब जामुन
और गरमागरम चाय। मुझे थकान बहुत महसूस हो रही थी इतने मे पतिदेव ने मन की बात कह
दी बोले,
“सुमी चलों कुछ खा लेते
है।“
मुझे यही तो सुनना था।
मैंने फटाफट दो प्लेट पकौड़े,दो गुलाब जामुन और
थोड़ी सी जलेबी आडर कर दी हम ने हाथ धोकर जैसे ही टेबल पर पहुंचे सब कुछ हमारे लिए
सजा हुआ था। पकौड़ों से करी पत्ते की सोंधी सोंधी महक आ रही थी और चाय का तो कहना
ही क्या पता नही कौन सा मसाला मिला रखा था चाय मे ऐसा लग रहा था बस पीते ही रहो।एक
तो मौसम सुहावना ऊपर से गरम चाय पता ही नही चला हमने कितने कप चाय पी ली।साथ
पकोड़ो का तो मजा ही अलग था ।उसके बाद गुलाब जामुन का दौर चला पेट मे जलेबी की जगह
ही नही बची ।वो जलेबी हम ने एक भूखी अम्मा को दे दी।
नीलकंठ महादेव मंदिर के
दर्शन करने के बाद हम सहस्त्र धारा आ गये तब बरसना शुरू हो गया था। वहां भी हम शाम
को छह बजे पहुंचे थे।वैसे तो दिन बहुत था पर बरसात आने के कारण हल्का धुंधलका हो
गया था वहां भी हम ने चाय पी बहुत मजा आया ये जो चाय पकौड़ों की दावत मुझ से
भुलाये नही भूलती।
Gunjan Kamal
11-Mar-2022 09:19 PM
बहुत खूब मैम
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Monika garg
12-Mar-2022 10:26 AM
धन्यवाद
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The traveller
11-Mar-2022 04:56 PM
बहुत खूब लेखन
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Monika garg
12-Mar-2022 10:26 AM
धन्यवाद
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𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
28-Feb-2022 07:01 PM
👌👌nice mam.. apne apna sfr bakhubi vrnn kiya hai.
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Monika garg
28-Feb-2022 09:44 PM
धन्यवाद
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